Saturday, November 21, 2009

जिन्दगी : एक कहानी

जिन्दगी- एक कहानी,
एक मूर्ख कहता चला जा रहा है,
और मैं भी एक मूर्ख, सुनता
सुन-सुन कर अच्छा भी लग रहा है
और बुरा भी, हूं खुश भी और दुखी भी
क्या अच्छा, क्या बुरा ? सब दोष है दोष दीमाग का,
गीत भी गूंज रहा है मन में एक –
आगे क्या होगा, आगे क्या होगा ?
दोस्तो विडंबना यह है –
कुछ क्षण बाद,
समाप्त हो जाएगी
जिन्दगी - एक कहानी ।

13 comments:

  1. likhna jari rakhe ,aur nikhar ayega.

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  2. बहुत ही उत्कृष्ट रचना है.
    ..............बधाई

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  3. बहुत अच्छी रचना है...

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  4. जिन्दगी एक कहानी नही होती इसे कहानी समझने वाले बहुत दुखी होते है। जिन्दगी सिर्फ जीने के लिए है मुस्कुराते रहे हर हाल में बस......

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  5. हम्म्म्म..... ! जीवन की क्षणभंगुरता पर लिखी गयी एक पलायनवादी मुक्त-छंद कविता !! आपके लेखन में संभावना दिख रही है, सुधार की गुंजाइश है और विचारों को तपाने की आवश्यकता है !!! स्मरण रहे, 'न दैन्यं न पलायनम्' !!!!

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  6. badhiya abhivyakti
    sundar rachna
    har jeevan ek kahani hi hai dost.

    shubh kamnayen

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  7. अभी परिपक्वता नहीं है रचना में ....पर आपसे संभावनाएं हैं .....!!

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  8. प्रयास अच्छा है। ऊपर दिए गए अपने श्रेष्ठजनों के सुझाव पर ग़ौर फरमाएं और अमल करें। शुभकामनाएं।

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  9. bahut sundar ............prayas achchha hai

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