Thursday, February 4, 2010

बदलता समय


महेश जी सरकारी कार्यालय में उच्च पद पर कार्यरत थे। वे भी आज के युग के अफ़सर थे एवं भ्रष्टाचार से घिरे हुए थे। उन्हीके सेक्सन मेमिश्रा जी भी कार्य करते थे, पर वे एक मामूली पद पर (चपरासी) थे। उनका पुत्र था सूरज जो एम.. तक पढ़ा था। उसी की चिंता मिश्रा जी को सता रही थी। इतनी कम आय में एम. ए. तक पढ़ाना कोई आसान बात नहीं थी। एक दिन उनके ही कार्यालय के लिए लिपिक पद के लिए विज्ञापन निकला। सूरज ने भी फ़ार्म भरा। लिखित परीक्षा हुई। सूरज ने लिखित परीक्षा उत्तीर्ण किया एवं सिर्फ़ इंटरव्यू ही शेष रह गया था।सहकर्मियों के कहने पर मिश्रा जी साहब के पास गए ,जिनपर इस पद को भरने की जिम्‍मेदारी थी ।वे साहब और कोई नहीं बल्कि महेश जी ही थे। मिश्रा जी ने हाथ जोड़कर उनसे आग्रह किया कि उनका पुत्र भी इंटरव्यू के लिए चुना गया है।अगर आप उसे थोड़ा देख ले तो....” महेश जी ने उनकी बात को काटते ही सीधा कह दिया “2 लाख रूपये लगेंगे।उनकी इस बात को सुनकर मिश्रा जी हक्केबक्के रह गए। वे बिना कुछ कहे चुपचाप बाहर गए। कुछ दिन बाद जब नतीजा घोषित हुआ तो सूरज का नाम लिस्‍ट में नहीं था। मिश्रा जी मन मसोस कर रह गए।
कूछ दिन बाद खबर आई कि महेश जी भ्रष्टाचार के आरोप में रंगे हाथों पकड़े गए। यह खबर सुनकर मिश्रा जी भी स्तब्ध थे।
करीब 6 साल बाद महेश जी जेल से छूटे अब उनकी नौकरी भी नहीं रही और कोई पूछने वाला। जब वे घर लौटे तो उन्होंने देखा उनके पुत्र राज की उम्र भी नौकरी लायक हो गई है और वह किसी परीक्षा में बैठने की तैयारी कर रहा था। महेश जी ने उससे उस कार्यालय का नाम पूछा जहां वह परीक्षा देने जा रहा था।
शाम को महेश जी उस कार्यालय में गए एवं वहां के अधिकारी से हाथ पैर जोड़कर निवेदन किया कि उनके पुत्र को यह नौकरी किसी तरह मिल जाए वो इसके लिए उन्हें नकद घूस देने को भी तैयार हो गए उस नौजवान अधिकारी ने उन्हें उठाया और निश्चित होकर जाने को कहा।
नतीजे घोषित हुए, महेश जी के पुत्र का नाम एकदम ऊपर था महेश जी खुशी से झूम उठे दूसरे दिन किसी तरह घर के गहने बेचकर अधिकारी को पैसे देने पहुंचे तो उस अधिकारी ने इंकार करते हुए कहा --- “अंकल मुझे शर्मिंदा करे मैने कुछ नहीं किया ,ये तो आपके बेटे की मेहनत का नतीजा है जिसके कारण आज वह सफल हुआ। मनुष्य के अंदर ईमानदारी सबसे बड़ी चीज हेती है, और किसी असहाय की सहायता करना हमारी मानवता है। मेरे पिता ने मुझे ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी है।उस युवक की बात सुनकर महेश जी शर्मिंदा हो गए। अंत में जब उस अधिकारी ने कहा कि मैं आपके ऑफिस के चपरासी मिश्रा जी का पुत्र हूं तो यह सुनकर महेश जी हक्के - बक्‍के रह गए।




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