Monday, January 11, 2010

अपने-पराए

रजत बाबू रिटायर हो गए थे। वे दिल्ली से अपने घर कलकत्ता आ रहे थे।ट्रेन का सफर था, और उन्हें ऊपर वाली सीट मिली थी। मगर उम्र के लिहाज से उनमें इतनी शक्ति न थी कि वे उपर चढ़कर रात को सो सकें। उन्हें यही चिंता खाए जा रही थी। पर खुदा का खैर था कि सामने बैठे एक नौजवान, जिसका नाम राजेश था, उससे रजत जी की परेशानी देखी न गई और विनम्रता से अपनी नीचे की सीट उनको दे दी। रजत बाबू को बड़ा ही आनंद आया उसकी ईमानदारी देखकर । रात हो गई , सभी नींद में थे पर रजत बाबू का मन राजेश की सह्दयता ने जीत लिया था। वे सोचने लगे कि उनका पुत्र भी राजेश की तरह होगा।
सुबह हुई, राजेश ने रजत जी को चाय एवं अपने घर से लाए खाने का समान दिया। मंजिल आ चुकी थी। सभी अपने समान लिए उतर गए। राजेश ने रजत जी को प्रणाम किया और अलविदा कहा। पर यह क्या, रजत बाबू को स्टेशन रिसीव करने घर से कोई नहीं आया। न बेटा न बहू ।पर उन्हें इससे दुख न हुआ।
घर पहुंचने पर भी परिवार द्वारा उत्साह एवं प्रेम का तनिक भी भाव न देखकर उनके मन की आशाएं एवं खुशियां मिट सी गई।वे घर में अपने को अकेला एवं मेहमान सा महसूस कर रहे थे, उनका एकमात्र सहारा उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार चुकी थी। अपने पुत्र द्वारा नेगलेक्ट किए जाने के कारण उनका ह्रदय टूट सा गया था। रात हो गई थी ,पर रजत बाबू यही सोच रहे थे कि पराए भी कभी-कभी अपनों से ज्यादा अच्छे होते हैं।
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नव वर्ष की शुभकामनाएं यह मेरी पहली कहानी है । अपने विचारों से अवश्य अवगत कराएं ।