Saturday, November 21, 2009

जिन्दगी : एक कहानी

जिन्दगी- एक कहानी,
एक मूर्ख कहता चला जा रहा है,
और मैं भी एक मूर्ख, सुनता
सुन-सुन कर अच्छा भी लग रहा है
और बुरा भी, हूं खुश भी और दुखी भी
क्या अच्छा, क्या बुरा ? सब दोष है दोष दीमाग का,
गीत भी गूंज रहा है मन में एक –
आगे क्या होगा, आगे क्या होगा ?
दोस्तो विडंबना यह है –
कुछ क्षण बाद,
समाप्त हो जाएगी
जिन्दगी - एक कहानी ।

Thursday, November 19, 2009

हीरा



कूड़े के ढ़ेर पर लेटे
दो बच्चों को देखा ,
पेंसिल मुंह में डाले ,
किताब पढ़ रहे थे ।

सुना है, कीचड़ में ही
कमल खिलते हैं,
तो क्या,कूड़ों के ढ़ेर से ,
हीरे भी निकलते हैं ?